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Kanchan Shukla

Inspirational

4  

Kanchan Shukla

Inspirational

उर्मिला लक्ष्मण संवाद

उर्मिला लक्ष्मण संवाद

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उर्मिला का प्रश्न,

हे शक्ति पुंज दशरथ नंदन ?

उर्मि का बंदन स्वीकार करो,

तुम रघुकुल की कीर्ति पताका हो,

भातृ प्रेम की परिभाषा,

मां के नयनों की ज्योति हो,

मेरे मन की अभिलाषा,

मैं प्रश्न पूछती हूं तुम से ?


उसका उत्तर दे दो तुम,

तुम को तो वन जाना ही था ?

यह मुझको था ज्ञात प्रिय ?

दुःख में भाई,भाई का साथ न दे ?


रघुकुल की ऐसी रीत कहां ?

तुम साथ मुझे लेकर न गए ?

इसका मुझे मलाल नहीं,

जो अश्रु मेरे मन की पीड़ा हरता ?

उसको क्यों मुझसे मांग लिया ?


वह मेरे साथ अगर होता,

मेरी पीड़ा कुछ कम हो जाती,

जब बीते पल विचलित करते,

तब अश्रु बहाकर मन को समझाती,

मैं भी चेतन हूं ?


इसका रहता अहसास मुझे,

तुमने मेरे अश्रु को छिन लिया,

मुझको पाषाण बना डाला,

इन चौदह वर्षों में मैंने,

शिला बन पीड़ा झेली,

अश्रु अगर होते मेरे ?


मैं भी मानव सा जी लेती ?

प्रेम त्याग लेता है सबसे,

यह मुझको है ज्ञात प्रिय,

पर अश्रु मुझे देना होगा ?


मैंने ऐसा न सोचा था ?

अश्रु बहाकर हर नारी,

अपनी व्यथा बताती है,

मैं अपनी व्यथा सुनाऊं कैसे ?


अश्रु बहाना मुझे मना है,

अश्रु बहाना कहां मना है ?

इसका उत्तर दे दो तुम ?


लक्ष्मण का उत्तर

मैंने तुमसे अश्रु क्यों मांगा,

इसका उत्तर देता हूं,

गर अश्रु तुम्हारे मैं न ले जाता,


तो अश्रु तुम्हारे बहते रहते,

इन नयनों की अश्रु धाराएं,

जल प्रलय फिर ले आती,

उस जल प्रलय की धारा में,

सब कुछ बहकर गुम हो जाता,

न मैं रहता न तुम रहती,

तब मिलन हमारा कैसे होता ?


प्रेम त्याग करता है सदा,

यह बात तुम्हें है ज्ञात प्रिय,

जो होते साधारण प्रेमी,

वह त्याग भी छोटा करते हैं,

तुम तो त्याग की देवी हो,

मैं अनुचर बन गया तुम्हारा,


हमने जो त्याग किया उर्मि,

वह हर कोई न कर सकता,

मैंने त्यागी थी अपनी निंद्रा,

तुमने अश्रुओं का दान किया,


हम दोनों के त्याग को कोई,

समझे या न समझे,

मैंने तुमको समझ लिया,

तुमने मुझको जान लिया,

अब न तुम मुझसे प्रश्न करो ?


मैं तुमको क्या उत्तर दूंगा ?

त्याग की देवी बनकर तुम,

हृदय पटल पर मेरे हो।।


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