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Akshat Garhwal

Abstract

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Akshat Garhwal

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उनसे क्या बैर निभाते हो?

उनसे क्या बैर निभाते हो?

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बात खुशी की अंत दबा के

झूठे आंसू ढुड़काते हो

अंश तुम्हारा है फिर भी

तुम गलती उसकी बतलाते हो।


प्यारा सा वह जीवन है

तुम क्यों मुस्कान चुराते हो

शुरू हुआ ना जिसका जीवन

उनसे क्या बैर निभाते हो ?


गलती खुद की मान ना लेते

और घमंड दिखला ते हो

बच्चों को ईश्वर कहने वाले

तुम खुद प्यारे बन जाते हो।


हांड मांस है वही तुम्हारा

इस बात को क्यों झुठलाते हो

शुरू हुआ ना जिसका जीवन

उनसे क्या बैर निभाते हो ?


जीवन ना देने की खातिर

क्या कारण तुम समझाते हो

इस समाज को ध्यान में रखके

तुम अपमानित हो जाते हो।


माना प्यार ना दे सकते

पर मौत ही क्यों दे जाते हो

शुरू हुआ ना जिसका जीवन

उनसे क्या बैर निभाते हो ?


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