उन्मुक्त
उन्मुक्त
चल प्रिये
खुलें आसमां में उड़ चले
गुनगुनाते गीत गाते हुए
न कोई पाबंदी की जंजीरें ,
न कोई कटीली सरहदें
न कोई डर की झंझटे ,
न कोई व्यंग्य की लकीरें
बस उन्मुक्त पंछी बन के
यह सफ़र हम तय करें
अपार प्रेम में डूब के
हम साथ साथ रहकर ,
हृदय में मिलकर जीये ।