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Bhavna Thaker

Abstract Others

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Bhavna Thaker

Abstract Others

उन लम्हों को तरसती

उन लम्हों को तरसती

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ज़िंदगी के उन लम्हों को तरसती एक आस लिए

खड़ी हूँ की तुम मुझे पुकार लो,

मौन तम के पार से हल्की सी आवाज़ तो दो

ज़िंदा हूँ अभी उर की वीणा बज रही।


नैनों की छटपटाहट को अश्कों का उपहार देकर

फासलों में सिमटे है दोनों, 

मेरे मन की अटारी पर तनहाई सज रही।


एक तुम्हारे वजूद से लिपटी कोई और रुप जानूँ ना,

टटोलकर देखा रिश्ते का कंबल विनष्ट स्वप्न की तान बज रही।


विषाद से भरी गगरी जीवन की खुशियों की कोई जगह ही नहीं,

निदाघ से उम्मीद करके तन विभावरी नित जल रही।


क्यूँ मेरे मनुहार पर तुम तिल भर ना हिल रहे,

जिस लगन में मैं जलूँ तू उस लगन से

क्यूँ है परे इंतज़ार में बरबस मर रही।



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