उलफ़त
उलफ़त


राहें उलफ़त में
हमसफ़र थे, जिनके कदम।
ढूंढते रहेंगे, उनके निशां
जब तलक, बाकी है दम।
आते-जाते रहे लोग
बनता गया कारवां।
गर्द में गर्त होते गये
खामोश रही, तब भी जुंबा।
किससे करें दरियाफ़त
शिकवा करें, भी तो कैसे।
धड़कन ने नुपूर बांध
नृत्य किया हो साथ जैसे।
जैसे चांद-सितारे सच्चे
सच्ची है, यह उक्ति।
हर चमकने, वाली वस्तु
सोना ही, नहीं होती।
लौ जब, बुझने लगे
तेज रौशन, होती है।
उलफ़त लगे जब थकने
शमायें पुरनूर, बनती है।
तो गम़ें,उलफ़त छोड़
क्या रखा ,है इसमें।
खुद को हमसफ़र बना
खुश होगी जिंदगी उलफ़त में।