तेरे हिज़्र में
तेरे हिज़्र में
आँखें नम हैं
पर आँसुओं को रोक रखा है मैंने,
क्योंकि इन्हीं में मैंने तेरे प्यार को छुपाया है।
हर बार जब भी तू बिछड़ा है मुझसे...
तुझे अपने बहते अश्क़ों में पाया है।
माना कि बहुत दर्द है इनमें
पर ऐ सनम !
हमने सुकून भी तो इसी में पाया है।।