बदलते गांव
बदलते गांव
गांव अब बदल गये हैं
लोग नशे में बहक रहे हैं
हिंसा द्वेष में जल रहे हैं
एक दूसरे को छल रहे हैं
अब ना प्रार्थना ना भक्ति है
अब तो पैसे में ही शक्ति है
वही सिर फुटोव्वल राजनीति
हुस्न पर सबकी आसक्ति है
गांवों का हाल शहरों से भी बुरा है
हर दिल में कोई न कोई जख्म हरा है
खेत खलिहान को लेकर लड़ाई
घर में बनती अलग अलग कड़ाही
प्यार प्रीत छूमंतर हो गये
गांव शहरों से भी बुरे हो गए।