उलझन
उलझन
अब बेवजह खुद से उलझता नहीं
मैं ऐसी उलझन हूँ जो सुलझता नहीं
गुनाह छोड़ कर कैसे मुझे नेक बनना है
मैं कोई भी नेकी दिल से करता नहीं
शायद हंसने वाले भी कभी ग़मगीन नहीं होते
इनकी आंखों की नमी कोई देखता नहीं
मेरी सोच में बड़ा कमज़र्फ हूँ मैं
अपनी सोच का अक्स चेहरे पर रखता नहीं
अपना किरदार सुथरा रखने वाले को अक्सर
दुनिया में कोई दूसरा पाकीज़ा लगता नहीं
किसी गहरी झील जैसा हूँ खामोश मैं
यह न समझना अपने अंदर तुफ़ान रखता नहीं।
