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अनजान रसिक

Abstract Inspirational

4.7  

अनजान रसिक

Abstract Inspirational

उद्गम कहीं, असर कहीं

उद्गम कहीं, असर कहीं

1 min
444



चरण मंदिर तक पहुँचते हैं, आचरण ईश्वर तक।

संकल्प हृदय में लिया जाता, कार्य पहुँचते समाज तक।

उम्मीद दिल में जगती है, सपने साकार होने की ख़ुशी नेत्रों तक।

कदम मंज़िल तक पहुँचते, तरक्की दुनिया तक।

सुर श्रोता तक पहुँचते, गुंजन सृष्टि तक।

सूर्योदय पूर्व में होता, प्रकाश पहुँचता चहुँ ओर तक।

लकीरें हाथ में होतीं, किस्मत ज़िन्दगी के फैसलों तक।

अपने कितने भी दूर क्यों नहीं होते, अपनापन पहुँच ही जाता दिल तक।

दिल की धड़कन बन कर जिंदगी, पहुँच जाती रग -रग तक।

रग-रग में भक्ति-भाव उमड़ कर पहुंचा ही देते चरणों को मंदिर तक।

जीवन का पहिया इसी तरह गोल गोल घूमता रहता,

उदगम कहीं असर कहीं और होता।

सब बातें फिर एक छोर पर जाकर मिल ही जाती हैं,

धरती गोल है इस तथ्य को चरितार्थ कर ही जाती हैं।


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