उड़ान की चाह
उड़ान की चाह
खुले आसमान में जब पंक्षियों को उड़ता देखती हूं
उनके संग मैं भी खुद को उड़ता पाती हूं
यूं तो चार दिवारी में बन्द रहती हूं
पर उनके संग पंख पसार आती हूं
उड़ते हैं मस्त मगन चूमते है पूरा गगन
देख यह नजारा थकते नहीं हैं मेरे नयन
इस उड़ान का अद्भुत यह नजारा है
जिसे खोना मुझको कहां गवारा है
खोई रहती हूं इनकी उड़ानों में
जैसे कोई झूमे किसी गीत के तरानो में
उड़ने की ख्वाहिश लिए ये मन बावला
पंक्षियो के संग ये भी उड़ने को चला
उड़ान इन पंक्षियों का मन को बड़ा भाता है
निर्मल नज़ारे को देख दिल को सुकून सा आता हैं
पिंजरे में बन्द पंक्षी को उड़ान की चाह है
मन के पक्षी की क्यों उलझी ये राह है
मेरा मन का परिंदा उड़ना चाहे
कुछ पल ये भी मस्त मगन होना चाहे