मन का परिंदा
मन का परिंदा
मेरे मन का परिंदा
तो बस उड़ना चाहे
ये ना रुकना चाहे
ना किसी के आगे
झुकना चाहे
मस्तमौला बन ये
हवाओं के संग
उड़ना चाहे
ना कोई रोक हो
ना कोई टोक हो
ना कोई पाबंदियों
की डोर हो
मन मेरा ऐसे
झूमे जैसे
रिमझिम बारिश में
नाचता कोई मोर हो
जहां ना कोई शोर हो
ना किसी से आगे निकलने
की होड़ हो
जहां ना किसी बंधन
की डोर हो
भर के आशा की किरणें
ये गगन को निहारे
मन का परिंदा तो बस
दूर गगन में उड़ना चाहे
