उद्भव
उद्भव
सूर्य अस्त हुआ तो क्या हुआ
कल पुनः उदित होगा
स्निग्ध रश्मियों से फिर
नव मार्ग प्रशस्त होगा
है ये गोधूलि की बेला
एक रात तुम ठहर जाओ
तुम्हारी स्वेद की हर बूंद का
कल नया मैराथन होगा
शायद मार्ग दुर्गम हों
धीमी गति से ही संतुलन हो
कदम पीछे हटाना पड़े तो क्या हुआ
यदि परिणाम सुंदर जीवन होगा
धरा निर्जीव पाषाण नहीं
उसके स्पंदन को सुनना होगा
धरा के हैं अपने नियम
उसकी प्रकृति को सहेजना होगा
जीवन नश्वर है तो क्या हुआ
निरंतरता से ही अमरत्व होगा
विकास की परिभाषा में
केवल मुद्रा कोष ही क्यों
धरा की हर खुशी को
कई बार जोड़ना होगा
सूर्य अस्त हुआ तो क्या हुआ
कल पुनः उदित होगा
स्निग्ध रश्मियों से फिर
नव मार्ग प्रशस्त होगा।