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त्याग

त्याग

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बड़े खुले विचारों में स्पष्ट करती है,

क्या सही क्या ग़लत ये परख रखती है।


नारी तू जीवन की ज्योति

तेरे बिना ये जग कुछ ना है।


तुझ पे घर आंगन का जिम्मा 

तुझ बिन तो हर बचपन है सुना।


तू तो ममता से परिपूर्ण है

प्रियवर के चरणों में ही तुझे सुकून है।


हर त्याग तू करती है

अकेले लड़ सकती है।


जैसा चाहे वैसे ढालती 

घर आंगन परिवार अपना।


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