तू
तू
किसी भी गुल को छुओ तो गुलाब हो जाये,
ज़रा होंठों से आब छू लो तो शराब हो जाये!
इतना भी तू शबनम-आलूद बदन न दिखा,
कि "क़ैस" की नीयत भी यूँ ख़राब हो जाये!
तूने पलट के देखा है मुझको यूँ अभी-अभी,
सच इक बार ही सही, मेरा ख़्वाब हो जाये!
तेरे जमाल के चर्चे पहुँचे हैं, परियों तक भी,
तेरे हुस्न से फ़रिश्ते दीवाने, जनाब हो जायें!
ये मरमरी बदन और सुर्ख़ लब-ओ-रुख़्सार,
तू पानी में जो उतरे आतिशी आब हो जाये!
ज़मीन पे ही रहना तू सुनकर अपनी तारीफ़,
न इतराना इतना कि तू इक सराब हो जाये!

