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Himanshu Sharma

Abstract Romance Fantasy

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Himanshu Sharma

Abstract Romance Fantasy

तू

तू

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किसी भी गुल को छुओ तो गुलाब हो जाये,

ज़रा होंठों से आब छू लो तो शराब हो जाये!


इतना भी तू शबनम-आलूद बदन न दिखा,

कि "क़ैस" की नीयत भी यूँ ख़राब हो जाये!


तूने पलट के देखा है मुझको यूँ अभी-अभी,

सच इक बार ही सही, मेरा ख़्वाब हो जाये!


तेरे जमाल के चर्चे पहुँचे हैं, परियों तक भी,

तेरे हुस्न से फ़रिश्ते दीवाने, जनाब हो जायें!


ये मरमरी बदन और सुर्ख़ लब-ओ-रुख़्सार,

तू पानी में जो उतरे आतिशी आब हो जाये!


ज़मीन पे ही रहना तू सुनकर अपनी तारीफ़,

न इतराना इतना कि तू इक सराब हो जाये!


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