तू क्यों नही सोता है...
तू क्यों नही सोता है...
रात काफ़ी हो चुकी हैं,
पर आंखें अभी जाग रही हैं...
है क्या ख्यालों में छुपा हुआ,
जो अब तक उस से भाग रही हैं...
कल की बारे में सोचकर,
कल को क्यों तू खोता है...
रातें आंखों से कहती हैं,
ए यार तू क्यों नहीं सोता है...
सन्नाटों में छुपा हरदम,
सुकून को अब ये ढूंढे ना...
ये रात भोर से मिलने लगी,
पर अभी भी आंखें मूंदे ना...
ख़्वाब ज़िंदगी के दिखाने में,
क्यों रात पड़ जाता छोटा है...
रातें आंखों से कहती हैं,
ए यार तू क्यों नहीं सोता है...
छुपकर जीवन की सच्चाई से,
आ कर ले कुछ नींद चोरी...
सुलाने को अब कोई रहा नहीं,
ए तकिए तू ही सुना दे लोरी...
जैसे ही आंखें थोड़ी होती है भारी,
क्यों सुबह तभी ही होता है...
रातें आंखों से कहती हैं,
ए यार तू क्यों नहीं सोता है...
कल की बारे में सोचकर,
कल को क्यों तू खोता है...
रातें आंखों से कहती हैं,
ए यार तू क्यों नहीं सोता है...