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Manoj Kumar

Romance

3  

Manoj Kumar

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तू है नील गगन की रानी

तू है नील गगन की रानी

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तू है नील गगन की रानी।

सौंदर्य वस्त्र बदन पर सोहे, तू प्रेम श्रृंगार दीवानी।

चन्द्र मुख नीलोत्पल आंखे , दीवानों की तू प्यास।

ठुमक- ठुमक कर कहां चली, क्या? सुगंध हवा के पास।


धीमी- धीमी गति बनाकर, तू कहां चली।

तेरे आने से सरोज ही क्या, कीचड़ में कली खिली।

हिरनी जैसी तेरी चाल निराली।

मेरा मन हर्षित होता है तुझे देख कर, तुझे नशा कहूं या फिर प्याली।


उपवन के पुष्पों से लगती तू प्यारी।

तुझे देखने का बहुत मन करता, मुझे छाई है खुमारी।

सिलसिला अब भी जारी है, एक खूबसूरत चेहरा देखकर।

तू एक बार मुड़कर देख ले जरा, अपना समझकर।


कभी रेशमी केश उंगली से ऐंठती।

कभी नैनों से छुप- छुप कर बातें करती।

शबनम की बूंदे बिखरे है तेरे होठों पर टपक कर।

मुकुल जैसी तू लगती, मेरा दिल कह उठता शर्माकर।


जहां पर जाती तू परिमल बिखेर देती है।

कोयल जैसी स्वर तुझमें, सबको मनमोहित कर लेती है।

सौरभ- वसना तुझ पर भावे, देखें मुसाफिर मुड़कर।

मनोज को तू प्रिय लगी, वो भी सपने में देखते हैं मुस्काकर।।


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