तू एक मेहमान है अब
तू एक मेहमान है अब
जब घर जाता हूँ तो मेरा ही बैग मुझे चिढ़ाता है,
मेहमान हूँ मैं ये पल पल मुझे बताता है
माँ कहती है सामान फ़ौरन बैग में डालो,
हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छुट जाता है…
घर पर पंहुचने से पहले ही लौटने की टिकट वक़्त परिंदे सा उड़ता जाता है
उंगलियों पे लेकर जाता हूं गिनती के दिन फिसलते हुए जाने का दिन पास आता है…..
अब कब होगा आना सबका पूछना,
ये उदास सवाल भीतर तक बिखराता है,
घर से दरवाजे से निकलने तक,
बैग में कुछ न कुछ भरते जाता हूँ..
जिस घर की सीढ़ियां भी मुझे पहचानती थी,
घर के कमरे की चप्पे चप्पे में बसता था मैं,
फैन,लाइट्स के स्विच भूल हाथ डगमगाता है…
पास पड़ोस जहाँ बच्चा बच्चा था वाकिफ,
बड़े बुजुर्ग बेटा कब आया पूछने चले आते हैं….
कब तक रहोगे पूछ अनजाने में वो
घाव एक और गहरा कर जाते हैं…
ट्रेन में माँ के हाथों की बनी रोटियां
डबडबाई आँखों में आकर डगमगाता है,
लौटते वक़्त वजनी हो गया बैग,
सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता है…..
तू एक मेहमान है अब ये पल पल मुझे बताता है..
मेरा घर मुझे वाकई बहुत याद आता है.
