तुम्हें पता चले
तुम्हें पता चले
चाँद पर जो दाग है
वो दाग नहीं उसका शृंगार है
किन्तु तुम्हारी दृष्टि दोषों से भरी पड़ी है
किसी की सजावट तुम्हें धब्बा लगती है
तुम्हें घृणा क्यों है
तुम इतने अप्राकृतिक क्यों हो
तुम्हें कृत्रिम श्रंगार,
बनावट इतनी अच्छी लगती है कि
लाखों मील दूर चाँद में दोष दिखता है
अपना खोट नहीं दिखता
जरा टटोलो स्वयं को, अपनी नीचता को
तुम्हें भी तो पता चले।