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Salil Saroj

Abstract

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Salil Saroj

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जीत लूँगा आसमाँ

जीत लूँगा आसमाँ

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मैं जीत लूँगा

एक दिन

ये सारा का सारा आसमान

और उसपे लिख दूँगा

अपनी यातना की कहानी।


अपना रुदन और क्रंदन

ताकि तुम साफ-साफ सुन सको

और समझ सको कि

जो तुम कर रहे हो

वो सब ठीक नहीं है।


मेरी असमर्थता का मज़ाक

तुम्हारी मर्दानगी सा सटीक नहीं है

तुम्हे बदलना होगा अपना

ये रवैया, ये व्यवहार।


वर्ना मैं बादल बनके बरसूँगा

तुम्हारे ही बनाए

सभ्य समाज पे

जिसकी बूँदों से

मैं तुम्हारा अभिमान गलाऊँगा।


और फिर समता की 

एक नई फसल लहलहाऊँगा।।


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