हाथ
हाथ
वो दो हाथ,
हस्त या कर!
है प्रत्येक मनुष्य के पास;
परंतु यह करता है मनुष्य पर निर्भर,
कि करना चाहता है,
वह इनका उपयोग,
छीनने के लिए किसी बालक की पुस्तक,
या प्रदान करने किसी को विकास।
यह वही हाथ हैं,
जिससे एक माता अपनी संतान को,
प्यार-से खिलाती है,
यह वही हाथ हैं,
जिससे एक शिक्षक अपने छात्रों को,
शिक्षा प्रदान करता है,
यह वही हाथ हैं,
जिससे एक जवान अपने देश की,
सेवा करता है,
यह वही हाथ हैं,
जिससे एक चिकित्सक,
मरीज़ों की जान बचाता है,
यह वही हाथ हैं,
जिससे एक कलाकार, बड़ी ही निपुणता से,
अपनी कला को दर्शाता है,
यह वही हाथ हैं,
जिनसे एक बालक, परीक्षा लिख,
अपना भविष्य रचता है,
यह वही हाथ हैं,
जिनसे उस परमात्मा ने,
इस खूबसूरत दुनिया की,
रचना की है,
यह वही हाथ हैं,
जो उपहार स्वरूप,
भगवान द्वारा,
प्रत्येक मनुष्य को प्रदान किए गए हैं,
जिनके उपयोग द्वारा,
मनुष्य है प्रबल करने हेतु कई काम,
जैसे सुबह में बदलना,
किसीके जीवन की शाम,
या कर देना किसीके जिवन का पूर्ण विराम।
यदि उचित उपयोग करे इनका मनुष्य,
तो बदल सकता है सारा दृश्य।
यदि प्रत्येक मनुष्य के,
दो हाथ मिल जाए साथ,
तो वह शक्ति,
जो उनकी एकता में होगी,
बदल सकती है समस्त संसार।