रह जाती है
रह जाती है
2212 2212 2212 2212
कितना करो सब के लिए थोड़ी कमी रह जाती है,
गम में हँसे पर आँखों में थोड़ी नमी रह जाती है।
चाहे अमावस में नहीं दीदार होता चाँद का,
शब में भी जुगनू की चमकती रोशनी रह जाती है।
होती सहर औ शाम आशिक़ की बहुत रंगीन सी,
जो हो मुहब्बत तो फ़िज़ा में शबनमी रह जाती है।
खोया है उसका ग़म समझते पाया है वो लगता कम,
उलझन में ऐसी खुशनुमा ज़िंदगी जीनी रह जाती है।
'ज़ोया' ये फ़ानी दुन्या को इक दिन है जाना छोड़के,
लेखक जाता है दुन्या से पर लेखनी रह जाती है।
8th October 2021 / Poem 41