मित्रता
मित्रता
मित्रता का नाता है बहुत पुराना,
याद जिसे आज भी है करता जमाना,
राम की दोस्ती केवट से पड़ा था भव तारना,
सुग्रीव से मित्रता तो बाली को पड़ा मारना,
दोस्ती हेतु विभीषण को पड़ा था गृह त्यागना,
सुदामा से कृष्ण की दोस्ती कुछ यूं था निभाना,
चरण धो सुदामा के त्रिलोक पड़ा था भेंट देना,
मुठ्ठी भर तंदुल के खातिर भोग छप्पन पड़े त्यागना,
सखा बने द्रौपदी के तो चीर पड़ा बढ़ाना,
मित्रता की अर्जुन से तो रथ पड़ा हाँकना,
सच्ची दोस्ती को कभी न आजमाना,
हासिल न होगा कुछ पड़ेगा पछताना,
दोस्त से दोस्ती हर कीमत पे पड़े निभाना,
चाहे जान जाये चली या जग पड़े हारना।