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Supriya Singh

Inspirational

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Supriya Singh

Inspirational

बेटों से आगे बढ़े बेटी....

बेटों से आगे बढ़े बेटी....

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पढ़े बेटी, बढ़े बेटी, जग में नाम करे बेटी।

बेटों संग कन्धा मिला, आगे सबसे चले बेटी।।

शिक्षित हो निखरे बेटी, समाज को बदले बेटी।

पिता से जो नाम मिला, जग में रौशन करे बेटी।।

सपने बुने जो ख्वाबों में, लम्बी काली रातों में।

पूरे उन्हें करने को, उड़ने दो स्वछंद हवा में।

मत डालो पैरों में बेड़ी, मृग जैसी विचरण करने दो।

खोखले सामाजिक बन्धन तोड़, उड़ने दो स्वछंद हवा में।

रीति-रिवाजों के जंजाल में मत उलझाओ, सुलझी रहने दो।

व्यर्थ आडम्बर क्यों करना, अब मनचाहा जीवन जीने

दो।

कहकर बेटी इज्ज़त घर की, अब इच्छाओं को मत कुचलो।

डोली में बैठाकर अब हुई पराई मत कहने दो।

डोली जाये जँहा, वँहा से अर्थी ही निकले ऐसा मत करने दो। 

बेटों के जैसे ही मुझको भी जीवन जीने के मौके दो।

अपना जीवन सफ़ल बना लूँ, लक्ष्य मुझे पा जाने दो।

बेटी हूँ तो क्या हुआ, लहू तुम्हारे से सींची हूँ।

उसी कोख से जन्म लिया है, जिससे बेटे को जनी हो।

फर्क करो मत बेटी- बेटे में, ईश्वर ने सुंदर उपहार दिया,

शिक्षित करो बेटी को, जन्म ले जिसने कुल पर उपकार किया...



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