आस्तित्व का अस्त
आस्तित्व का अस्त
चंद लमहो के लिये रुकना था
एक सराय पर
लागाव इतना हुआ की बस
काफिला बना बैठा
अपनो का
सराय को ही खरीदना
चाहा था कब
तुमने साथ क्या छोडा चमकती दमकती
सभी गलिया रोशनी से
सजी तो थी
मगर विरांन
मानो जैसे कागज के फूलों पर
गुंगूनते भवरो
की फिजूल कोशिश
सेहत भी तुम राहत भी तुम
तुम्हीं से
मेरी दुनिया होती आबाद
मेरे अस्तित्व की तुम थी
रूह
क्या मुमकीन है
नामुमकीन हो जाये मुमकीन
तस्वीर से बाहेर
आओ तुम
मेरे अस्तित्व को अस्त होने से
बचाओ
सच तो यह है
चंद लमहो के लिये रुकना था
एक सराय पर.
