STORYMIRROR

Ajay Singla

Abstract

3  

Ajay Singla

Abstract

जीवन चक्र

जीवन चक्र

1 min
162


बचपन के वो दिन सुहाने

याद आये गुजरे ज़माने

माँ की गोद और ढेर सा प्यार

काम कुछ नहीं पर नखरे हज़ार।


स्कूल में जब पड़ती थी डाँट,

तो बड़े होने का करते थे इंतजार

दोस्तों के साथ कॉलेज की वो गपशप याद है

हंसी ठिठोली में फिर सब कुछ भूल जाना याद है

उनके ही सपने में खोये रहते थे हम रात भर

उनका हमको देखकर वो मुस्कुराना याद है।


अपना घर छोटा सा वो आशिआना याद है

बीवी से लड़ना झगड़ना और मनाना याद है

जिंदगी की दौड़ में चलते हुए वो पांव पर

थोड़े पैसे जोड़ के वो कार लाना याद है।


किलकारी वो बच्चों की और मुस्कुराना याद है

आते ही घर गोद में वो झट से आना याद है

स्कूल से आने पे वो मुरझाये होते थे बहुत

संग संग वो खेलना और कुल्फी खाना याद है।


बच्चे अब कॉलेज में पढ़ने के लिए तैयार है

जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं

जिंदगी की दौड़ में जाने वो जायेंगे कहाँ

हम भी उनसे दूर रहने के लिए तैयार है।


जीवन का अगला पड़ाव अब वृद्ध बनके आएगा

दूर फिर इस दौड़ से आराम हमको भायेगा

पोता पोती नाता नाती आएंगे मिलने हमें

जिसको बचपन में खिलाया हाथ से वो खिलायेगा।


रिश्ते नाते कोई भी हो आधार उनका प्यार है

बचपन, जवानी और बुढ़ापा यही जीवन का सार है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract