Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Moumita Bagchi

Abstract

3  

Moumita Bagchi

Abstract

तुम्हारा शहर, मेरा शहर

तुम्हारा शहर, मेरा शहर

1 min
280


फिर वही शहर है,

जहाँ हम साथ साथ खेले,

पले औ बड़े हुए हैं।

हमारी साँसों ने एकसाथ

सीखा था जहाँ धड़कना,

पहलीबार एक दूजे के लिए।


पिछली बार आई थी जब,

किसी को प्रतीक्षा थी तब

मेरे जल्दी पहुँचने की,

पधार चुके थे वे,

मेरे से पहले ही।


पर आज,

परिस्थितियाँ बहुत भिन्न है।


हाँ ,यह वही शहर है !

और मैं भी वही हूँ।

सब कुछ वैसा ही तो है।


पर आदतन,

मेरी नज़रों को

तलाश है---

आंखों में बसे हुए

एक अपनेपन की,

और इंतज़ार की।


लेकिन,

अब यहाँ तुम न थे,

कहीं नहीं थे !


पर ठहरो,

एक जगह अभी तक

शेष है ढूँढना।


शहर में न सही,

जानती हूँ कि

मेरी किस्मत में भी नहीं हो।


परंतु मुट्ठीभर एक निवास है,

जहाँ नित्य तुम्हारा ही वास है,

एक गोपन और अंतरंग कोने में।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract