तुम्हारा शहर, मेरा शहर
तुम्हारा शहर, मेरा शहर
फिर वही शहर है,
जहाँ हम साथ साथ खेले,
पले औ बड़े हुए हैं।
हमारी साँसों ने एकसाथ
सीखा था जहाँ धड़कना,
पहलीबार एक दूजे के लिए।
पिछली बार आई थी जब,
किसी को प्रतीक्षा थी तब
मेरे जल्दी पहुँचने की,
पधार चुके थे वे,
मेरे से पहले ही।
पर आज,
परिस्थितियाँ बहुत भिन्न है।
हाँ ,यह वही शहर है !
और मैं भी वही हूँ।
सब कुछ वैसा ही तो है।
पर आदतन,
मेरी नज़रों को
तलाश है---
आंखों में बसे हुए
एक अपनेपन की,
और इंतज़ार की।
लेकिन,
अब यहाँ तुम न थे,
कहीं नहीं थे !
पर ठहरो,
एक जगह अभी तक
शेष है ढूँढना।
शहर में न सही,
जानती हूँ कि
मेरी किस्मत में भी नहीं हो।
परंतु मुट्ठीभर एक निवास है,
जहाँ नित्य तुम्हारा ही वास है,
एक गोपन और अंतरंग कोने में।