तुम साथ थे जब
तुम साथ थे जब


तुम साथ थे जब धूप मुस्कुराया करती थी,
आ के हवायें भी तुम्हारा पता बताया करती थी,
फूल-पत्तियों का भी संग-संग झूमना होता था,
तितलियों का भी आस-पास घूमना होता था।
पंक्षियों का भी चहचहाना लगा होता था,
तिफ़ल खिलखिलाता ज़्यादा कम रोता था,
था आलम वो कैसा बयाँ करूँ मैं कैसे,
जैसे चाँदनी मुझे बेफ़िक्र सुलाया करती थी,
तुम साथ थे जब धूप मुस्कुराया करती थी।
मैं आज भी उन्हीं लम्हों को याद करता हूँ,<
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सच कहूँ तो अब भी उतना ही प्यार करता हूँ,
इन फ़िज़ाओं को वैसा ही इंतजार है अब तक,
जैसे चाँद डूब कर लालिमा बरसाया करती थी,
तुम साथ थे जब धूप मुस्कुराया करती थी।
आओ और देखो यहां कुछ भी बदला नहीं,
मैं वहीं हूँ खड़ा इक कदम भी चला नहीं,
ये वादियाँ फिर से मुस्कुराना हैं चाहती,
मेरी दरखतें बस तुम्हें ही पाना हैं चाहती,
आओ वैसे ही जैसे पहले आया करती थी,
तुम साथ थे जब धूप मुस्कुराया करती थी।