मेरी एक शाम हो जाए
मेरी एक शाम हो जाए
जिंदगी के साहिल पर अकेला क्यों टहलूँ,
कोई तो मेरे साथ में हो ऐसा इंतज़ाम हो जाए।
मैंने बहुत खा लिए ज़ख्म दिल - ए - बेकरार पर,
अब तो मरहम का कुछ इंतज़ाम हो जाए।
मैं गुजरूं अपनी जिंदगी के मोड़ से तो,
तेरे शहर में भी मेरी एक शाम हो जाए।
करता रहूँ मैं कोशिश तेरे इश्क़ में सिमटने की,
बिन पाए मोहब्बत कहीं रुकना हराम हो जाए।
मैं हूँ प्यासा तेरे इश्क़ - ए - दीदार का,
तेरा दीदार करते करते वक़्त तमाम हो जाए।
मैं करूँ इबादत तेरी औऱ तू करे सज़दा मेरा,
मैं तेरा रहीम बनूँ औऱ तू मेरा राम हो जाए।
जब ठहरने लगे यह वक़्त का दरिया,
तब तेरे साथ में मेरा भी नाम बदनाम हो जाए।
सर छुपा सकूँ मैं तेरे आँचल की ओट में,
अब कोई ऐसा भी तो एक काम हो जाए।