कोई वक़्त मुकर्रर कर दे तू
कोई वक़्त मुकर्रर कर दे तू
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कोई वक़्त मुकर्रर कर दे तू ,
मेरे आने का कोई ठौर बता ,
या मुझ को कहीं पर ले चल तू ,
या मेरे संग जीवन तू बिता।
मैं रोज़ ही तेरी राह तकूँ ,
नैनो के दर्पण में तुझको धरूँ ,
तू जब मर्जी मुझे आने को कहे ,
ये कैसे होगा मुमकिन यूँ भला ?
उस रात में तू जगता ही रहा ,
इधर मैं भी देख सोई ही नही ,
पर अपना मिलन हो ही ना सका ,
हम दोनो के बीच समय था खड़ा।
एक ऐसा वक़्त बता मुझको ,
जिसमे ना कोई हो हम दोनो के सिवा ,
जब इस तन्हा तन में आग लगे ,
और आग बुझे तेरी बातों से यहाँ।
तेरे इश्क की मैं हूँ दीवानी ,
उलझन में घिरी हूँ देख ज़रा ,
कोई वक़्त मुकर्रर कर दे तू ,
मेरे आने का कोई ठौर बता ।।