. तुम रहो ना रहो..! फैंटेसी
. तुम रहो ना रहो..! फैंटेसी
तुम रहो ना रहो...!
अक्सर...
तुम्हारी अनुपस्थिति में भी
तुमसे बातें हो जाती है...!
तुम्हारा होना
ना होना
तब कहाँ मायने रखता है
जब हम हों भी
और...
नहीं भी...!
प्रेम...
मोहताज नहीं
जिस्म का...!
आश्रित होता है
रूह पर...!
हवा बन हम कहीं भी
मिल जाते हैं
तुम्हारे ना होने पर भी...!
तुम हर वक़्त
मौजूद...
ना होकर भी...!!!