निशा
निशा
रात की तो ये बात थी
हर ओर नशा बिखेरती जाती
थे कुछ प्यासे जाग रहे
सीने में एहसासों का प्याला लिए
कहीं उमड़ती कसक
कहीं अनजानी थमी सी ख्वाहिशें
कहीं कोई आस
कहीं उम्मीदों की आजमाइश
सबके अपने हिस्से
सबके अपने प्याले
पर रात तो एक सा नशा बिखेरती रही
हां नशों का हिसाब
सबके अपने अपने प्यालों ने तय किए....
