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मर्द

मर्द

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हर बेटी का पहला प्यार है जो....

हर बेटे का पहला यार है जो..

अपने पंख भुलाकार उनकी उड़ान भरने वाला,

एक जिम्मेदार पिता है वो....


हर बहन की ताकत है जो.....

छोटा हो या बडा, उसका दुलारा है जो...

कच्ची उम्र से ही रक्षा के वादे करने वाला,

एक फिक्रमंद भाई है वो...


हर सुहागन की पहचान है जो....

उसके नए अस्तित्व का वजूद है जो...

जिम्मेदारियों की बंदिशों में कैद,

एक झुँझलाने वाला पति है वो...


माता-पिता की उम्मीद है जो...

उनकी आँखों का तारा है जो...

पारिवारिक संघर्षों में हर वक्त हारने वाला,

एक मजबूर बेटा है वो...


नारी का सम्मान करता है जो...

फिर भी किसी एक की भूल से,

सामाजिक कलंक बनता है जो...

लोगों के कसे हुए तानों का,

एक हारा हुआ पीड़ित है वो...


सब कुछ करता है जो...

फिर भी तारीफों का हकदार नहीं बनता है जो...

कौन कहता है मर्द को दर्द नहीं होता,

गौर से देखिए, किसी कोने में छिपकर,

सिसकियों के घूँट पीता है वो...


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