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Pragyanshu Pandey

Drama

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Pragyanshu Pandey

Drama

तुम फिर से मुझको जीत रही हो ना

तुम फिर से मुझको जीत रही हो ना

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तुम फिर से मुझको जीत रही हो ना

भरते - भरते प्रीत की हाला

फिर से मुझको रीत रही हो ना

तुम फिर से मुझको जीत रही हो ना


सुधियों के मेलों से

कबका रूठ गया था मैं

कुछ संघर्षी सपनों के हारे जाने से

कबका टूट गया था मैं

पर फिर से बोली को सुनवाकर

फिर से ज़ुल्फों को लहराकर

हमको तुम खींच रही हो ना

तुम फिर से मुझको जीत रही हो ना


कुछ सोची - समझी शर्तों से

या बिखरी - उलझी बहसों से

कुछ निष्कर्ष निकाले हमने

एक घूंट पीने में

तोड़े कितने ही प्याले हमने

पर फिर से कंगन को खनकाकर

फिर से नुपुरों को झनकाकर

बना हमें संगीत रही हो ना

तुम फिर से मुझको जीत रही हो ना...।


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