तुम फिर खो जाना
तुम फिर खो जाना
तुम मिलकर खोते जाना
धुंधली परछाई की रेखाएं,
बनाते हुए चलते जाना
कुछ हालातों के पंख लिए,
पंछी बनकर आकाश का
होते जाना, थोड़ा खोते जाना
खुद से, खुद में, अपने को
मैं फिर ना मिल जाऊं तुम्हें,
उसी रात की उसी घोसले में
जिसको तुमने ठुकराया था,
बेकार आवास समझ कर कर
कहीं सांझ ना हो जाए
इसलिए कहता हूं
थोड़ा-थोड़ा नभ में,
जल्दी-जल्दी खोते जाना !