तुम इतना सम्मान न देना
तुम इतना सम्मान न देना
तुम इतना सम्मान न देना,
जिसका बोझ उठा ना पाऊं,
मैं बंजारा फिरूं आवारा,
कैसे अपना भवन बनाऊं।
सांझ,सवेरा एक सरीखे,
पतझड़,सावन भेद न लाऊं,
छांव मिली मग में तरुवर की,
घड़ी दो घड़ी समय बिताऊं।
राग भैरवी या हो तांडव,
हर सुर में मै साज बजाऊं,
सुख दुख अपने खेल खिलौने,
हर्ष शोक में भेद न लाऊं।
सांसों से सांसो तक सरगम,
उससे आगे सूक्ष्म कहाऊं,
काया की माया क्षण भंगुर,
फिर क्यों सबसे नेह लगाऊं।