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तुम हो अगर

तुम हो अगर

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क्या तुम वो ख्वाब हो,

जो सुबह की आंच में पिघलती है

या वो गुलाब हो,

जो पुराने पन्नो में महकती है


तुम हो अगर,

तो सामने क्यों नहीं,

या फिर कहीं,

तुम वो जानी पहचानी,

महक तो नहीं,

जो इन हवाओं में सिमट रही है...!


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