तुम ही हो
तुम ही हो
समन्दर का विस्तृत किनारा
वाम पार्श्व में डूबता सूरज
सिंदूरी सांझ
तुम्हारे पांवों को पखार
वापस लौटती लहर
मैं और तुम
हमारी युगल छाया
धरती पर तुम्हारी उंगलियों से निर्मित
प्रेम का प्रतीक चिह्न
सीपी शंख
सब कुछ है इस पुरानी अल्बम में
लगे इस चित्र में
जब कभी पलटता हूँ
और
जी लेता हूँ
बीते पल दुबारा
बंद आंखों में स्मृति कौंध जाती है
पुरानी
जैसे यह चित्र न हो तुम्हारा
बल्कि
तुम ही हो।

