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Vinit Kumar

Romance

3  

Vinit Kumar

Romance

तुझे समझ कहाँ!

तुझे समझ कहाँ!

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वो तेरी खामोशियाँ  

तेरा फ़ोन ना उठाना

साधारण लगता है तुझे ना?

मगर वो आधा घंटा 

मै कैसे बिताती हूँ

कैसे समझे ग तू?

वक़्त थम सा जाता है 

जैसे जितने बुरे सपने 

और ख्याल 

अपने हक़ीकत में 

घटित होने का समाचार

मेरे कानो मे चिल्ला- चिल्ला 

कर बता रहें हो।

कैसे समझे गा तू!

सोच जब तेरा वो 

पसंदीदा खिलौना कही ग़ुम

हो जाता 

या कभी पता चलता

की तेरा कोई खिलौना जो

बहुत ही अजीज़ हुआ करता था

कोई ले गया

 तो कैसे बोखला जाता था तू।

और तू तो मेरे लिए मेरा

जीता जागता जिगर का तुकड़ा है रे।

जब तेरा कोई खबर ना 

मिलता है तो जैसे

पूरी दुनिए मेरी छिन जाती है।

वो उस पल की घबराहट 

कैसे बयां करू मै!

अख़बार के वो दर्द

भरी ख़बरें और

वो तस्वीरे चलचित्र बन 

आँखों के सामने दिखने 

लगते है।

दिल लाख बार टूटने जितना

दर्द मानो एक बार में महसूस होता हो।

मगर तुझे समझ कहाँ!


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