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Vinit Kumar

Abstract Tragedy

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Vinit Kumar

Abstract Tragedy

तनिक उस दिन हिम्मत किया होता

तनिक उस दिन हिम्मत किया होता

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यूँ जो तुम कभी-कभी 

वक़्त सी थम जाती हो।

रूठ जाती हो मुझसे

खाशकर किसी और के केहने पर

तो, जानती हो बिखर जाता हूँ मै।

ख़ुद पर ही संदेह होने लगता है

की कही मेरी ही तो गलती नहीं थी?

और हर पल तुझे याद कर 

हर सुबह उसी जगह...

अरे जहां हम रोज मिलते थे! 

हाँ! वही

घंटो तक बैठा रहता हूँ।

जनता हूँ तुम मेरे पास अब नहीं

आओगी किसी और की जो

होगई हो।

मगर आज भी यकीं करो मेरा

तुम्हारी गर्माहट मै वहाँ 

महसूस करसकता हूँ।

काश मेरे पास इतनी हिम्मत होती

की अपने और तुम्हारे बाबा से बात कर पाता

तो आज यहाँ तुहारे साथ बैठा होता।

तुम्हारे साथ बैठा होता।।


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