तुझे क्या नाम दूँ
तुझे क्या नाम दूँ
ऐ दुनिया, तेरा ये दस्तूर कैसा
इसे क्या नाम दूँ,
बड़ा मशहूर है जो आज में,
वाह रे ज़माना,
बाप बचपन में अपनी उँगलियों के सहारे
जिसे रोज स्कूल छोड़ा
बेटा वही धनवान् बनकर
देखो, बाप को ही कैसे,
आश्रम में ढकेल आता है।
इसे हम उस इंसान की मज़बूरी समझें
या उसकी स्वतन्त्रता में बाधक था वह
उम्र गुजार दी जिसनें बेटे को पालनें में
उसी बेटे पर देखो आज,
बाप एक बोझ बनता जा रहा है।
अजब-सी है दुनिया तेरी रंगत
प्यार दिल की तू पहचाने ना
स्वार्थ में अंधी है ! मुहब्बत कुछ जाने ना।
बहुत ख़ुश नहीं है पंडा !
दुनिया तेरे इस दस्तूर से
आग़ लगे तेरे इन पैसों में,
हमें माँ-बाप से जो दूर करे !
