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Rashi Singh

Abstract

5.0  

Rashi Singh

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टूटा -टूटा चाँद

टूटा -टूटा चाँद

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आज चाँद कुछ टूटा सा है

इस जमी से कुछ रूठा सा है

छुपा जा रहा है इसके आगोश में

जमी बन गयी जैसे महबूबा है 

त्राहि-त्राहि कर उठी हर दिशा

हर नजारे का पसीना छूटा सा है

सितारे भी खो रहे रोशनी

यह टकराव भी अनूठा सा है

हवा चल रही घबराकर बड़ी

हर दिल कुछ संजीदा सा है

ग्रहण लग जाये इस ग्रहण को

हर दिल बहुत टूटा सा है


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