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Dolly Singh

Abstract

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Dolly Singh

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ठंड भरी रातें

ठंड भरी रातें

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तन ढकने को ना कपड़े हैं

ना होठों पर कोई बातें

बस उन्हें डराया करती हैं

ठिठुरन भरी ठंड की रातें


ना भूख मिले ना वस्त्र मिले

वे रह लेते थे भूखे नग्न

अन्न कभी पा जाते थे तो

सो लेते थे होके मग्न


पर अब सर्द भरी यह लंबी रातें

उन्हें जगाए रखती हैं

ना कटती है ना घटती हैं

बस उन्हें भी रुलाए रखती हैं


कैसे ये दुख दर्द मिटेंगे

कैसे वे यह ठंड सहेंगे

कब रातें सो के कटेगी

कैसे उनकी भूख मिटेगी


करो विधाता तुम जग में

समता का अधिकार

रहे न कोई भूखा नग्न

सबसे सम व्यवहार


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