ठान लें तो कुछ असंभव नहीं।
ठान लें तो कुछ असंभव नहीं।
उठ रहा सैलाब है,
तैर रहा एक ओर कछुआ है,
भला दोनों में क्या मेल है,
लगता मानो एक धरा और दूजा आकाश है,
पर ठान लें कुछ तो कहां कुछ असंभव है,
सुनी कहानी बहुत है कछुए और खरगोश की,
शायद कुछ बयां कर रही यह अनूठी चित्रकारी है,
जो संभव नहीं कभी इसका अर्थ नहीं वो संभव नहीं,
कहते हैं न "मन के हारे हार है मन के जीते जीत"
बेशक धीरे चलना उसकी आदत है पर स्वभाव नहीं,
जब हो आवश्यकता,
तो बना लेता अपनी कमजोरी को वो अपनी ढाल,
और जीत लेता हर बाज़ी है।