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Smita Singh

Inspirational

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Smita Singh

Inspirational

टाॅक्सिक

टाॅक्सिक

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मुझे तो समझ ही नहीं आता,कि ये सब मेरे साथ ही क्यों होता है।कभी किसी का बुरा नहीं सोचती,कभी किसी का अपमान नहीं करती।कभी किसी के पीठ पीछे कुछ नहीं कहती,जो भी मुझे,लगता है सही या गलत,मुंह के आगे कहती हूं।डिप्लोमेटिक जवाबो से,किसी को मैन्यूप्लेट नहीं करती ,फिर भी लोगो की नजर मैं बुरी बन जाती हूं।और वो अच्छे जो,मुंह के,आगे कुछ और और पीठ पीछे कुछ और होते हैं।"नलिनी ने बड़बड़ाते हुए, पानी की बोतल संध्या की तरफ बढ़ायी।


"ये तो हर उस शख्स की कहानी है ,आजकल जो अपने जीवन के किरदारों को ईमानदारी से जी रहा है।इसमें परेशान होने वाले,जैसा नया क्या है?"संध्या ने,अपनी बात कहते हुए, पानी पीया।


"परेशान नहीं हूं,बस बैक टू बैक जब वही सिमिलर वजह देखती हूं तो कारण ढूंढने की कोशिश करती हूं कि क्यों ऐसा है कि आजकल लोगों को दोगले,झूठे,बेईमान, इधर कई उधर करने वाले लोग क्यों पसंद आते हैं।उन्हीं से वो इम्प्रेस भी नजर आते हैं।कुछ तो वजह होगी।"नलिनी ने फिर से अपने मन में घुमड़ने वाले सवालों को संध्या को बताया।

"वजह बस इतनी सी है कि,जिन्हें तुम एक दूसरे की पसंद और इम्प्रेसिव बोल रही हो ,वो सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं,या ये कहो कि एक जैसे हैं।क्योंकि उन सबकी कोई ना कोई कमजोरी,कोई ना कोई व्यवहार एक दूसरे से मेल खाता है ,कहीं ना कहीं एक डर होता है ऐसे लोगों के मन में कि वो अगर एक दूसरे के साथ, एक झुंड में नहीं रहेंगे एक दूसरे को खुश रखते हुए तो उनका अस्तित्व पर सच्चाई की चोट वो बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे।इसलिए हर उस व्यक्ति को अपने से दूर रखने की कोशिश करते हैं एक दूसरे से ,जो उनके इस खोखलेपन को चोट पहुचा दे।"कहते हुए संध्या ने साफगोई से अपनी बात रखी।


"इसका मतलब तो यह हुआ कि आज की दुनिया में चलने के लिये हम भी उनकी तरह बन जायें या अकेले रहे।"नलिनी ने आशंकित नजरों से उसे देखा।


"नहीं ,बिल्कुल नहीं।तुम बस ऐसे टाॅक्सिक लोगों से दूर रहो,क्योंकि तुम अगर ऐसे लोगों को जानते बूझते भी उनके साथ रहोगी तो वो तुम्हें ऐसे ही जताते रहेंगे कि वो सब झुंड वाले सही हैं ,तुम ही खराब हो। तुम्हें उनके साथ रहने से कुछ भी प्रोग्रेसिव मिलेगा नहीं,बल्कि तुम्हें नकारात्मक और बनायेगा।क्योंकि तुम चाहकर भी उनकी तरह बन नहीं पाओगी ,और उन्हें अपनी स्पष्टवादिता से बदल नहीं पाओगी।तुम बस इतना करो कि खुद को ऐसे लोगो के लिए मत बदलो, क्योंकि आज की दुनियां में भेड़ों की झुंड वाली सोच की कमी नहीं है।"कहते हुए संध्या ने नलिनी को जैसे कुछ समझाने की कोशिश की।

"ऐसे तो हम अकेले रह जायेंगे।सोशल सर्कल भी जरूरी है ना।"कहते हुए नलिनी ने जैसे अपने एक छुपे हुए डर को प्रकट किया।


"तो तुम क्या अभी भी इस गलतफहमी में हो कि ये तुम्हारे साथ है।नहीं मेरी जान तुम उनके साथ रहकर भी अकेली हो,क्योंकि तुम से मैने कहा ना कि तुम उनकी जमात में तब तक साथ रहकर भी शामिल नहीं हो सकती जब तक उन जैसे ही नहीं बन जाती।जो खुद के नहीं है वो तुम्हारे क्या होंगे?जिनका दोगलापन उन्हें ही नहीं कचोटता हो उनको तुम्हारी समझदारी भरी बातें क्या कचोटेंगी?ऐसे बिना रीढ़ की हड्डी के लोगो के साथ रहनें से अच्छा है,अकेले रहें मस्त रहें।"कहते हुए संध्या ने नलिनी को एक मजबूत हिदायत दे डाली।


"शायद तुम ठीक कह रही हो,कि वाकई जो ईमानदार है वो अकेला है।जैसे तुम ,भीड़ में भी अकेले नजर आती हो।"कहते हुए नलिनी हंस पड़ी।


"सही कहा,भीड़ से हटकर रहने वालों कि ही अलग पहचान होती है,भीड़ में शामिल होने वाले उसमें ही खो जाते हैं।अपने अस्तित्व को निखारने में अपनी उर्जा लगाओं, टाॅक्सिक रिश्तों को बचाने में नहीं क्योंकि..."कहते हुए नलिनी को इशारे से दौड़ लगाने का आमंत्रण दिया...."क्योंकि वो किसी के नहीं होते।"नलिनी और संध्या साथ बोलते हुए, घर की तरफ दौड़ते हुए अपनी सुबह की वाॅक को अंजाम तक पहुंचाने निकल पड़ी ,एक नयी उर्जा के साथ।



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