तपिश
तपिश


सदका उतारा जिन्दगी तेरा हरदम
लगता है रास हमे तू आयी नही
महकती हुई रात थी प्यारी मगर
आगोश मे नींद ने हमे लिया ही नहीं
महसूस किया तेरी हर तपिश को
सिकाई के लिये तूने आँच पर धरा ही नही
मश्तीष्क ले आया पुरानी यादो का बवंडर
दिल से कहिसे कोई आवाज आयी ही नहीं
इश्क कचनार सा रुखा सुखा रहा
घोंसलो मे घरौंदा कभी बना ही नही
मेहर थी तेरी जो किनारे लग गयी
तूफानों का जोश कभी कम हूआ ही नही
कब तलक जमीर को दफन करेंगे 'नालंदा'
बदन का रुह से वास्ता रहा ही नहीं।