"तपे धरा आकाश "।
"तपे धरा आकाश "।
गरमी शोला बन रही, तपे धरा आकाश।
बहे पसीना एड़ी लग, निकल रहा दम सांस।
निकल रहा दम सांस, जीव जंतु घबरा रहे।
जल्दी आओ मेघों,अर्ज सभी हम कर रहे।
कह "जय"करो मेहर,बनों न तुम अब हठधर्मी।
करके तेज बारिश, दूर करो अभी गरमी।