तन्हाई की रातें
तन्हाई की रातें
तन्हाई की ये रातें
अकेले गुजरती हे कहाँ
अपने आपसे बात कर करके
ओ थकती हे कहाँ
किसके लिये इंतजार की ये घड़ियाँ
बितती हे अब कहाँ
छुप-छुप के रो लूँ लेकिन
ये आँसू निकलती हे कहाँ
गुमसुम सा ये जिंदेगी
इसमे हंसी छुट्ती हे कहाँ
किसकी झुटी मीठी बातों से
ये दिल पिघलती हे कहाँ
कागज के जो फूल थे आप
मेहक आएगी कहाँ
बिगड़े हुए तो नसीब ही था
अब संवरती कहाँ
दिल को जब टुकड़े टुकुड़े करदिए
चाहत अभी रहेगी कहाँ
नसीब का मजाक समझ के
दिल चुप हो जाता है कहाँ।
