तमन्ना-ए-इश्क
तमन्ना-ए-इश्क


जब रात लगभग आधी सी गुजर जाती है तब याद आती हो तुम,
तुमसे की हुई सारी बातें, तुम्हारे द्वारा किए हुए वादे,
तुम्हारे द्वारा की हुई हर बात जो रात में अंदर ही अंदर खूब रुलाती है।
मानो इस दुनिया की भीड़ में मैं एकदम से अकेला पड़ जाता हूं,
और तुम याद आओ क्यों न यहां जब ऑफिस का काम खत्म हो जाता है
तो कोई अपने वाइफ से तो कोई अपनी प्रेमिका से बाते करने में लग जाता है,
और मैं तन्हा rest area में बैठकर अक्सर तुम्हारे बारे में सोचता हूं,
तुमसे जो बाते करते समय तुम्हारे साथ फ्लर्ट किया उसको और फिर
एक सुकून सा मिलता है और हल्का सा मुस्कुरा लेता हूं।
पर ये सुकून ज्यादा समय तक नही ठहरता क्योंकि ये रिश्ता एकतरफा है।
और हां तुम आज कह रही थी कि तुम तो याद ही नहीं करते तो मैं तुम्हे बता दूं कि
याद उसे करते हैं जिसे भूल जाते हैं,
और शायद तुम ये नही जानती कि जितनी बार मैं अपनी "श्रीजी" को
याद करता हूं उतनी बार तुमको भी याद करता हूं,
"और प्रेम की सीमा इससे ज्या
दा क्या होगी
अपनी लाडली जी के समक्ष मैने तुमको याद किया है।"
पता नही ये रिश्ता कैसा है मैं भी नही जानता तुम हर बार खुदको
मुझसे अलग करने की कोशिश करती हो और मैं उतनी ही बार तुम्हारी ओर चला आता हूं।
कभी कभी लगता है कि मैं तुमसे आर या पार की लड़ाई कर लूं फिर लगता है
मेरी फिजूल भरी और बोरियत भरी बाते कौन सुनेगा
फिर रह ही कौन जाएगा हफ्ते में हाल पूछने वाला,
कौन पूछेगा कैसे हो,
कौन कहेगा ध्यान रखो अपना,
कौन कहेगा तुम तो याद ही नहीं करते,
कौन कहेगा कि तुम हमे क्यूं बताओगे सारी बात हम हैं ही कौन तुम्हारे,
सच बताऊं तो कभी कभी तो ऐसा लगता है कि तुमको तुरंत फोन करूं
और तुमसे बहुत सारी बातें करूं और बातें ऐसी कि कभी खत्म ही न हो फिर लगता है
तुम कहीं व्यस्त होगे आफिस के काम से और अक्सर व्यस्त ही रहते हो,
तुमने ने तो अपने लिए भी समय नहीं दिया हुआ है फिर मैं कहां,
मसला ये नहीं कि तमाम इश्क किया।
मसला ये है कि सब जाया हो गया।।