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तलाश

तलाश

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जिन मंज़िलों की राह,

नहीं मालूम उन मंज़िलों की,

तलाश में निकल जाओ,

किसी ग़म में किसी ख़ुशी में,

या यूहीं किसी बेपरवाह,

अंदाज़ में निकल जाओ।


अधूरी-सी उन ख्वाइशों,

को पूरा करने या,

गरम-सी इन सांसों में,

ठंडी हवाएँ भरने,

ढूँढने खुद को इस,

इतने बड़े जहाँ में या,

खुद को ही खोने के,

एहसास में निकल जाओ।


बनने वो जो अब तक,

बनना चाहते थे,

करने वो जो अब तक,

करना चाहते थे,

जीने उन लम्हों को जो,

अब तक नहीं जिए,

नयी सोच और पुराने किसी,

लिबाज़ में निकल जाओ।


कहने वो अनकही बातें

सुनाने वो अनसुने किस्से,

बहने उस समंदर में,

जिसका किनारा नहीं पता,

बेताब से बेफिक्रे किसी,

मिजाज़ में निकल जाओ।


नशे में, बेहोशी में या,

अब तो होश-ओ-आवाज़ में,

निकल जाओ,

जिन मंज़िलों की राह नहीं,

मालूम उन मंज़िलों की,

तलाश में निकल जाओ।


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