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थोड़ी झूठी है वो

थोड़ी झूठी है वो

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थोड़ी झूठी है वो,

जिसे मैं उसका सच समझता हूँ,

बचकानी सी हरकतें उसकी,

जिसे मैं उसका बचपन समझता हूँ।


आँखों में नूरी है,

बेतहाशा है पर अधूरी है,

गालों में लाली हैं,

आँखे उसकी जरा सी काली हैं।


शिल्पत उसकी चाल है,

लंबे उसके बाल हैं,

दूसरों का दर्द काफी

अच्छे से समझती है।


अपना दर्द कहने को

जमाने से डरती है,

कुछ भूल जाने को उसकी आदत,

बेवक़्त मुस्कुराना जैसे इबादत।


मुझे अपना कोई दर्द

नहीं बतलाती है,

मेरी हर खुशी को

धागे में पिरोते जाती है,


कुछ भी कर दो उसकी बात,

हैं वो लाजवाब।


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